B.A_B.Sc_B.Com. (III Semester) HUMAN VALUES AND ENVIRONMENT STUDIES - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बी.ए./बी.एस-सी./बी.कॉम. ( III सेमेस्टर) मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.ए./बी.एस-सी./बी.कॉम. ( III सेमेस्टर) मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2654
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बी.ए./बी.एस-सी./बी.कॉम. ( III सेमेस्टर)  मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययन

भारत के युवाओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

सबसे पहले पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति की आँधी को सारी शक्ति लगाकर रोकना होगा, तथा मनुष्य को उसकी स्व- महिमा में पुनः प्रतिष्ठित करना होगा। इस प्राथमिक कार्य को किये बिना, केवल मनुष्य की आर्थिक अवस्था को उन्नत करने के लिए चाहे जितने भी राजनीतिक दल क्यों न खड़े कर लिए जायें, चाहे जितनी भी पंचवर्षीय योजनायें क्यों न बना ली जायें, गरीबी उन्मूलन के नाम पर चाहे जितनी भी विदेशी सहायता क्यों न ले ली जाय इन सब से कुछ भी लाभ न होगा; ये सारे के सारे प्रयास व्यर्थ ही सिद्ध होंगे!

विद्यार्थियों का एक बहुत बड़ा वर्ग भले ही 'साइंस और टेक्नोलोजी', 'मैनेजमेंट- आईटी प्रोफेशनल' या विज्ञान की अन्य किसी भी शाखा में कितना भी प्रशिक्षित क्यों न हो जाए, वह तब तक समृद्ध राष्ट्र-निर्माण के लिए सच्चे अर्थ में 'रचनात्मक शक्ति' नहीं बन सकता, जब तक कि वह 'चरित्र की शक्ति से भी सम्पन्न न हो जाए।

स्वामी विवेकानन्द ने चेतावनी देते हुए कहा था, 'यदि आध्यात्मिक शिक्षा ( या चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा) का अनुसरण नहीं किया गया, तो तीन पीढ़ियों में ही हमारी जाति का विनाश हो जायेगा।' क्योंकि चरित्र-निर्माण के प्रति पूरी तरह से उदासीन बने रहने के फलस्वरूप, केवल ऊँची-ऊँची डिग्रियों को प्राप्त करने के होड़ में, जो नकारात्मक गुण चरित्र में प्रविष्ट हो जाएँगे वे इस तथाकथित शिक्षा को बिल्कुल ही व्यर्थ बना देंगे। और जिन लोगों के पास इस सामूहिक 'चरित्र हनन' के प्रयास को विफल कर देने का सामर्थ्य है, उन में से कोई इस चेतावनी पर ध्यान नहीं देंगे। क्योंकि यह चेतावनी उनके कानों में पहली बार दस्तक दे रही हो, ऐसी बात नहीं है।

तो क्या अब इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं किया जा सकता है? हाँ, किया जा सकता है! इस लक्ष्य की सिद्धि के लिए अब केवल एक ही मार्ग शेष है, राष्ट्र-निर्माण की इस संधि-बेला में भारत के नागरिकों को 'मोह-निद्रा' से जाग्रत करने के लिये अब हमलोगों को स्वयं उठ खड़े होना होगा तथा उनकी कुम्भकरणी निद्रा को भंग करने के लिये गाँव-गाँव में घूमकर समस्त देशवासियों को स्वामी विवेकानन्द का आह्वान मंत्र-" उत्तिष्ठत जाग्रत!” सुनाना होगा। तथा जो पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति हमारे युवाओं का चरित्र हनन करने के लिए, 'सुरसा' के समान मुँह फैलाये दौड़ी चली आ रही है, उसका दृढ़तापूर्वक सामना करने के लिए, युवाओं को ही उसके विरुद्ध एक राष्ट्र-व्यापी' 'चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन' खड़ा करना होगा।

हम अपने 'मन' को सद्विचारों का 'दैवीकवच' पहनाकर हाथों में 'देश-भक्ति' की प्रज्वलित मशाल थामकर तथा देशवासियों के लिए अपने 'हृदय' में सागर सदृश अथाह प्रेम भरकर, पाश्चात्य सभ्यता के चरित्र हननकारी समस्त घातक अस्त्रों को पूरी तरह से विफल कर सकते हैं। हमारे युवा भाई अपने 'शरीर' (Body) को हृष्ट-पुष्ट बनाने, 'मन' (Mind) की एकाग्र रखने तथा हृदय (Heart) को विशाल बनाने के लिये मनुष्य-निर्माणकारी प्रशिक्षण प्राप्त करके स्वयं यथार्थ 'मनुष्य' बनकर इन दुष्टशक्तियों के समस्त प्रयासों को आसानी से कुण्ठित कर सकते हैं। तथा उनके ऊपर अपनी विजय का डंका बजा सकते हैं।

हमारे वैदिक ऋषिओं ने 'क्षात्र-वीर्य' और 'ब्रह्म- तेज' (Dynamic Goodness of Manliness and All loving intelligence of saintliness) अर्थात सदाचार की शक्ति को जीवन में प्रतिष्ठित करा देने वाली ऊर्जा से भरपूर "पौरुष" के साथ-साथ सन्त-सुलभ सर्वजन प्रेमी बुद्धि से सम्पन्न युवा शक्ति का निर्माण करने के ऊपर बहुत जोर दिया है। तथा इसी कार्य को सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य मानते हुए, 'मनुष्य-निर्माणकारी विद्या' या 'परा विद्या' का हमारे शास्त्रों में सर्वत्र बहुत गुणगान किया गया है।

मुण्डक उपनिषद के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है- अपरा विद्या और परा विद्या। हम इन्द्रिय-गोचर वस्तुओं के विषय में जो कुछ भी जानते हैं, वह अपरा विद्या है। जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, इतिहास-भूगोल, और वेदोक्त ज्योतिष शास्त्र, या वास्तु शास्त्र आदि का ज्ञान भी अपरा विद्या के अन्तर्गत ही आता है। इन्द्रियातीत सत्ता 'आत्मा' का ज्ञान परा विद्या है। किन्तु दुर्भाग्यवश पाश्चात्य प्रणाली की शिक्षा व्यवस्था में सर्वाधिक ज्ञान अपरा विद्या का ही है। इसका अर्थ यह हुआ कि यद्यपि हमें सम्पूर्ण विश्व का ज्ञान है, किन्तु यदि हमें अपनी आत्मा का ज्ञान नहीं है, तो हम आत्मज्ञान से वंचित है। आत्मज्ञान अर्थात् परम सत्य (परमात्मा ) का ज्ञान, जो कि देश-काल-कारण के अतीत है, परे है, उसे परा विद्या कहते हैं। प्राचीन काल में हमारे शिक्षा-संस्थानों में जिन्हें हम 'गुरुकुल' कहते थे, ये दोनों विद्याएँ (परा - अपरा, भौतिक और आध्यात्मिक) एक साथ शिष्य ( विद्यार्थियों) को प्रदान की जाती थीं। किन्तु आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में केवल अपरा विद्या ही प्रदान करने की व्यवस्था है। परा विद्या को जानने वाले शिक्षकों का निर्माण करने की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिये परा विद्या को अलौकिक विद्या मान कर उसके प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था हमारे B.Ed, या M. Ed. तक के शिक्षक-प्रशिक्षण कोर्स में नहीं रखा गया है। इसीलिये आधुनिक शिक्षण संस्थानों मे परा विद्या को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। सत्य का साक्षात्कार (या आत्मसाक्षात्कार) करने की पद्धति पतंजलि योग सूत्र या अष्टांग योग को सिखलाने वाले शिक्षकों का निर्माण किये बिना, कोई साधारण शिक्षक 'आत्मानुभूति' (Self Realization) प्राप्त करने की विद्या या मिथ्या अहं से परे जाने की विद्या (Self - Transendence) की पद्धति किसी दूसरे व्यक्ति को सिखा ही नहीं सकता, इसीलिए प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में मनुष्य के यथार्थ स्वरूप को या उसकी दिव्यता ( DIVINITY) को अभिव्यक्त करने की पूर्णतः उपेक्षा की गयी है। यहाँ तक कि 'गुरु' शब्द का वास्तविक अर्थ भी भुला दिया गया है, और आजकल बड़े ही हल्के अर्थ में इसका प्रयोग किया जाता है।

मानव जाति के प्रमुख नेता या अवतार हैं- श्रीराम, श्रीकृष्ण, ईसा मसीह, बुद्ध, श्रीशंकराचार्य, मुहम्मद, महावीर आदि और सदयः अभिनव पथ-प्रदर्शक 'प्रथम युवा नेता है, श्रीरामकृष्ण ! इनका अवतार ही पाश्चात्य भोगवाद की आँधी से आधुनिक विश्व को बचाने के लिये वेद को पुनः प्रतिष्ठित करने का कार्य करने के लिये हुआ है। वेदों के सर्व-धर्म समन्वय के सिद्धान्त को विश्वपटल पर आधुनिक भाषा में रखने के लिये ही उनके साथ श्री माँ सारदा देवी और स्वामी विवेकानन्द जी भी आये हैं। ये अवतार ही मानवता के श्रेष्ठतम आचार्य और पथ-प्रदर्शक या नेता हैं।

पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति के दुष्प्रभाव को रोकने के लिये, स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में महामण्डल के युवा प्रशिक्षण शिविर में प्रदान की जाने वाली 'नेतृत्व प्रशिक्षण या 'Leadership training' को प्राप्त करके भारत के युवा निश्चित रूप से 'चरित्र निर्माणकारी - सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत' बन सकेंगे। एवं भविष्य के गौरवशाली भारत का निर्माण करने के लिये एक ऐसे समाज की स्थापना कर देंगे जहाँ के नागरिकों राष्ट्रीय चरित्र में 'क्षात्रवीर्य' और 'ब्रह्मतेज' साथ-साथ एवं एक सामान आभा बिखेरेंगे। इसी महान स्वप्न को अपने हृदय में सँजोये हुए हमारे, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि वीर शहीदों ने भारत माता की बलि वेदी पर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था।

आज का युवा समुदाय अपनी चारित्रिक शक्ति की संप्रभुता का दुन्दुभीनिनाद कर उन अमर शहीदों के स्वप्नों को साकार कर सकते हैं। भारत के युवाओं के समक्ष यही सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकार कर, अपना चरित्र - गठन करके बहुत बड़ी संख्या में सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूतों का निर्माण करना सबसे कठिन चुनौती है। क्योंकि चुनौती से प्राप्त होने वाले- 'जय' या पराजय' के ऊपर ही भारत का गौरवशाली भविष्य निर्भर करता है, तथा इस कार्य का सारा उत्तरदायित्व युवाओं के कन्धों पर ही है। अतः वे अपनी तथा अपनी प्यारी मातृभूमि को संकट में डालने का जोखिम उठा कर ही इस चुनौती की उपेक्षा कर सकते हैं।

चरित्र निर्माण में पुरुषार्थ की भूमिका (Self Effort For character Building) - 'पुरुषार्थ' - अर्थात् आत्म-प्रयास ही चरित्र निर्माण का एकमात्र साधन है! जो कोई भी व्यक्ति अपने चरित्र का निर्माण करने में रुचि रखता है, उसे इसके लिए कठोर परिश्रम भी करना पड़ता है, इसका अन्य कोई मार्ग नहीं है। तुम यदि कुछ प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें उसका मूल्य भी चुकाना पड़ेगा। तुम यदि अपना चरित्र सुंदर रूप में गठित करना चाहते हो तो, तुम्हें निरंतर पुरुषार्थ या स्वप्रयत्न के रूप में इसका मूल्य भी चुकाना होगा।

सच्चा - चरित्र मानव स्वभाव के 'तात्त्विक अंश' (आत्मा या हृदय) को भी स्पर्श करता है। इसीलिए केवल एक - 'दिखावटी शिष्टाचार 'सीख लेने को ही 'चरित्र - गठन' समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। किसी फुटपाथ पर तीन सौ रूपये में बिकने वाली पुस्तकों यथा 'ड्राइंग रूम में लोकप्रिय होने के सुहावने नुस्खे' सभी अवसर के लिए' शिष्टाचार के गुर; जैसी पुस्तकों में वर्णित केवल' बाह्य सभ्याचार' को ही वास्तविक चरित्र समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने अन्तरमन या अवचेतन मन में परिवर्तन लाना है, इसीलिये ये सारे दिखावटी दाँव-पेंच तुम्हारे वास्तविक स्वभाव की पुनर्रचना नहीं कर सकते। कुछ पुस्तकों (जैसे How to ween friends and influence people आदि) में वर्णित शिष्टाचार या सभ्याचार के 'दिखावटी गुर' सीख लेने से ही जीवन संग्राम के किसी भी क्षेत्र में सम्पूर्ण विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। अतः इस प्रकार के नकली नुस्खों में वर्णित दाँव-पेंच को ही चरित्र के वास्तविक गुण समझ कर अपने आचरण में उतारने से बचना चाहिए। किसी मनुष्य का सच्चा - चरित्र, उसे उसके दैनन्दिन जीवन में भी सर्वोच्च नैतिकता पालन करने में समर्थ बना देता है।

चरित्र-निर्माण के लिए अध्ययन (Reading For Character- Building) - जो लोग चरित्रवान मनुष्य बनना चाहते हैं या तो आत्मविकास करना चाहते हैं उनके लिए एक उत्तम परामर्श 'Keep the Holy Shrine of your Mind, God's temple, Pure and Free from all your Thought Enemies'. - अर्थात्' अपने मन रूपी पवित्र तीर्थ को ईश्वर के मन्दिर को, अध:पतित करने वाले शत्रुतापूर्ण विचारों से सदा मुक्त रखो।

यह कथन भी पूर्णतया सत्य है कि- "हमारे अपने ही विचारों के अतिरिक्त, दूसरा कोई भी हमारा वास्तविक शत्रु नहीं है। वैसे अपवित्र विचाररूप 'शत्रु' हमारे ही कामवासना, स्वार्थीपन तथा पूर्वाग्रह से उत्पन्न होते हैं, तथा हमारे ही मन में छुपे रहते हैं।" मन रूपी वास्तविक पवित्र 'तीर्थ स्थल' को सभी तरह के अपवित्र या शत्रुतापूर्ण विचारों से सदा मुक्त तथा निर्मल बनाए रखने का सबसे सरल उपाय तो यही है कि मन को निरन्तर सद्विचारों के चिंतन में ही व्यस्त रखा जाय, पवित्र विचारों के सबसे विश्वसनीय और अक्षय आपूर्तिकर्ता तो हमारे 'सद्ग्रंथ' ही हैं। एटकिंसन ने कहा हैं कि - "सद्ग्रंथों के वास्तविक मूल्य को आँक पाने में भला कौन समर्थ हो सकता है?

"सद्ग्रंथों से निरावृत - ज्ञानराशि' बताते हुए फ्रांसिस बेकन कहते हैं-"हमारे सद्ग्रंथ मानो समय के समुद्रमें ज्ञान - राशियों से भरे हुए उन जल-पोतों के सदृश हैं जो उसमें संचित बहुमूल्य ज्ञान राशि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सुरक्षित रूप में पहुँचा देने का कार्य करती है। उन ग्रंथों से हमें अतीत और वर्तमान युग के सर्वोत्कृष्ट मानस द्वारा निसृत 'सर्वोत्तम प्रज्ञा' प्राप्त होती है। उनकी ज्ञानशक्ति हम लोगों की तुलना में अपरिमित है, तथा मनीषियों द्वारा जीवन भर धैयपूर्वक किए गए चिंतन-मनन के फलस्वरूप प्राप्त ज्ञान तथा कल्पनाशक्ति से उपलब्ध सृष्टि के सौन्दर्य के रहस्य को हमें प्रदान करने के लिए ये सद्ग्रंथ सदैव प्रस्तुत रहते हैं। यदि तुम सचरित्र संपन्न मनुष्य बनना चाहते हो तो सदंथों को पढ़ने की आदत डालो।” ठीक उसी प्रकार स्वाध्याय के लिए सही पुस्तकों का चयन करते समय भी इसी चेतावनी को याद कर लेना चाहिए।

उनके कथन का तात्पर्य यही है कि विवेक विचार किए बिना जो कुछ सामने दिख जाए उसी को पढ़ने लगना बिल्कुल उचित नहीं, क्योंकि उससे लाभ के बजाय हानि होने की सम्भावना अधिक है। वे आगे कहते हैं- “वर्तमान शिक्षा-पद्धति बिल्कुल गलत है, मन को विवेकसम्मत निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित करने से पूर्व ही उसमें तथ्यों को ठूंस दिया जाता है। शिक्षा केवल शब्दों को रट लेना मात्र नहीं है, हम इसको मानसिक शक्तियों का विकास अथवा व्यक्ति को सही ढंग से और दक्षतापूर्वक सत इच्छाओं को चयनित करने (विवेकसम्मत निर्णय लेने) का प्रशिक्षण देना कह सकते हैं।"

शिक्षा की यही परिभाषा हमें "चरित्र निर्माण के लिए अध्ययन के दूसरे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत" में ले जाती है। वह सिद्धांत कहता है कि-'यदि कोई व्यक्ति शास्त्रों के अध्ययन से सर्वाधिक लाभ उठाना चाहता हो तो उसे एक 'पाठक' (Reader ) के साथ-साथ एक अच्छा 'विचारक' (Thinker) भी अवश्य बनना चाहिए। 'क्योकि केवल तथ्यों का संकलन भर कर लेने से ही ज्ञान का वास्तविक उद्देश्य - 'विवेकसम्मत निर्णय लेने कि शक्ति' भी प्राप्त नहीं हो जाती।

चरित्र-निर्माण कैसे करें ? (Building A Character) - स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- 'मनुष्य के मन में ही सारी समस्याओं का समाधान मिल सकता है, कोई भी कानून किसी व्यक्ति से वह कार्य नहीं करा सकता जिसे वह करना नहीं चाहता, अगर मनुष्य स्वयं अच्छा बनना चाहेगा, तभी वह अच्छा बन पायेगा। सम्पूर्ण संविधान या संविधान के विशेषज्ञ मिलकर भी उसे अच्छा नहीं बना सकते। हम सब अच्छे (मनुष्य) बनें, यही समस्त समस्याओं का हल है।

तुम अभी स्वार्थपरायण या खुदगर्ज बन जाने में असमर्थ हो, तुम दूसरों का कल्याण करने की अपनी इच्छा को रोक पाने में असमर्थ हो, इसीलिए तुम अच्छे (मनुष्य) हो, किन्तु इसके लिए अपने मुँह से अपनी बड़ाई मत हाँको, क्योंकि तुम दूसरों का कल्याण करने के चरित्र से युक्त हो, इसीलिए इसका सारा श्रेय तुम्हें नहीं, तुम्हारे अच्छे चरित्र को जाता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी तरह से तुम निश्चित रूप से अच्छे चरित्र के अधिकारी बन चुके हो, इसीलिए अपने अच्छे चरित्र के द्वारा बलात प्रेरित होकर ही तुम अच्छे कार्य करते हो। हाँ, निश्चित रूप से इसका श्रेय तुम्हें भी मिलना चाहिए, क्योंकि अच्छे चरित्र को अर्जित करने के लिए, सच्चरित्र का अधिकारी बन जाने के लिये तुमने अवश्य ही दीर्घ काल तक लगातार संघर्ष किया होगा; एवं वैसा करने के पहले तुमने इस विषय पर लम्बे समय तक चिन्तन-मनन किया होगा और तभी तुम इस निष्कर्ष पर पहुँचे होंगे कि सच्चरित्र का अधिकारी बनने के लिये अवश्य ही तुम्हें कठोर प्रयत्न करना चाहिए तथा दृढ़ संकल्प के साथ वैसा करते करते तुमने अपने चरित्र को अच्छे साँचे में ढाल लिया है। तुमने अच्छी आदतों को क्रमबद्ध करने के उद्देश्य से, दृढ़ संकल्प के साथ स्वयं को केवल सद्कर्म करते रहने पर मजबूर कर दिया होगा।

इसीलिए जिस समय तुम कोई सद्कर्म कर रहे होते हो, भले ही तत्काल तुम्हें इसके लिए वाहवाही भी मिल जाये, किन्तु उस क्षण तुम वैसा कुछ नहीं कर रहे होते हो जिसका श्रेय तुम्हें दिया जाना चाहिए, किन्तु निश्चित रूप से तुम्हें इस बात का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए कि तुमने अच्छा मनुष्य बनने के विषय में चिन्तन किया है तथा अच्छा चरित्र अर्जित करने के लिए कठोर परिश्रम किया है। यह कार्य हमलोगों को सदैव करना चाहिए, अच्छा चरित्र गठित करने के दृढ़ निश्चय पर पहुँचने, तथा वर्षों तक निरन्तर कठोर परिश्रम करने के लिए पहले हमें उचित रीति से विचार करना सीखना चाहिए तथा अपने चरित्र को और अधिक उत्कृष्टतर बनाते रहने के लिए, अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक हम लोगों को निरन्तर संघर्ष करते रहना चाहिए।

चरित्र के 12 दुर्गुण या दोष कौन कौन से हैं जिन्हें हमें बाहर निकालना है?

1. जीवन स्तर के मानदण्ड का दिखावा करने में वृद्धि नहीं।
2. "कपटता नहीं"
3. "जंग (मोर्चा) करके मरना ठीक नहीं"
4. स्वर्ग जाने की चाह नहीं"
5. " असन्तोष नहीं"
6. "आत्मसंतुष्टि नहीं"
7. " नैराशय नहीं"
8. “कर्म विमुखता नहीं"
9. "ज्योतिष नहीं"
10. " भय नहीं”
11. "क्रोध नहीं"
12. “विद्वेष नहीं"

इन दोषों को पहचानने और इन्हें दूर करने के बाद अपने चरित्र को अच्छे रूप में गढ़ने का दृढ़ संकल्प लेने तथा चरित्र के उन 24 आवश्यक गुणों-जिन्हें अच्छा चरित्र गढ़ने के लिए अर्जित करना आवश्यक है, के बारे में जान लेने के बाद, यदि हम लोग उन्हें अपनी आदत बना लेने का प्रयत्न लगातार करते रहें, तो परिणाम में एक अच्छा चरित्र निर्मित हो जायेगा।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय-1 मानव मूल्य (Human Values) पाठ्य सामग्री
  2. मूल्यों के प्रकार
  3. भारतीय संस्था में विकसित मूल्य
  4. उद्यम प्रबन्धन में मूल्य
  5. पेशे के प्रति वफादारी की श्रेणियाँ
  6. पेशे के प्रति वफादारी के मूल्य के सिद्धान्त
  7. समाज कार्य पेशे के प्रति निष्ठा का पालन
  8. प्रबन्धन में सांस्कृतिक मानवीय मूल्य
  9. दर्शन
  10. सांस्कृतिक मूल्य
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञांत कीजिए।
  12. अध्याय - 2 चरित्र निर्माण में स्वामी विवेकानन्द के सिद्धान्त (The Principles of Swami Vivekanand in Character Building) पाठ्य सामग्री
  13. भारत के युवाओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
  14. सात पापों की गाँधीवादी अवधारणा
  15. अहिंसा का दर्शन और गाँधी
  16. माता-पिता तथा अध्यापकों की भूमिका के प्रति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम के विचार
  17. माता-पिता तथा शिक्षक की भूमिका के प्रति APJ अब्दुल कलाम के विचार
  18. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  19. अध्याय - 3 मानव मूल्य और वर्तमानव्यवहार-मुद्दे : भ्रष्टाचार एवं रिश्वत (Human Values and Present Behaviour Issues: Corruption and Bribe) पाठ्य सामग्री
  20. भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव
  21. भ्रष्टाचार व असमानता
  22. विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार
  23. संचार माध्यमों (मीडिया) का भ्रष्टाचार
  24. चुनाव सम्बन्धी भ्रष्टाचार
  25. नौकरशाही का भ्रष्टाचार
  26. कॉरपोरेट भ्रष्टाचार
  27. शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार
  28. विविध भ्रष्टाचार
  29. भ्रष्टाचार और स्विस बैंक
  30. समाधान
  31. रिश्वत
  32. सामाजिक नेटवर्क एवं संचार में व्यक्तिगत नीति
  33. विशिष्ट संरचना
  34. ऑनलाइन शॉपिंग
  35. यूनाइटेड किंगडम का रिश्वत अधिनियम
  36. सामान्य रिश्वतखोरी अपराध
  37. विदेशी सरकारी अधिकारियों की रिश्वत
  38. अभियोजन और दंड
  39. अन्य प्रावधान
  40. रिश्वत अधिनियम का अनुपालन
  41. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  42. अध्याय - 4 नीतिशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Ethics) पाठ्य सामग्री
  43. महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ
  44. नीतिशास्त्र के प्रमुख सिद्धान्त
  45. आध्यात्मिक मूल्य
  46. भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ
  47. निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate social responsibility या "CSR" )
  48. रतन नवल टाटा
  49. अजीम हाशिम प्रेमजी
  50. बिल गेट्स
  51. माइक्रोसॉफ्ट
  52. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  53. अध्याय - 5 निर्णय निर्माण में धार्मिकता (Holistic Approach in Decision Making) पाठ्य सामग्री
  54. समस्या का विश्लेषण करने के तरीके
  55. श्रीमद्भगवत् गीता : प्रबंधन में तकनीक (The Bhagwat Gita : Techniques in Management)
  56. धर्म एवं जीवन प्रबंधन
  57. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  58. अध्याय - 6 चर्चा द्वारा दुविधाओं की व्याख्या (Elaboration of Dilemmas through Discussion) पाठ्य सामग्री
  59. विपणन संगठन : अर्थ व उद्देश्य
  60. मार्केटिंग की दुविधा
  61. भारतीय दवा उद्योग
  62. जेनेरिक दवा (Generic Drug)
  63. निजीकरण में दुविधा (Dilemma of Privatisation)
  64. सार्वजनिक उद्यमों द्वारा संतोषजनक कार्य न करने के कारण
  65. निजीकरण
  66. उदारीकरण में दुविधा (Dilemma on Liberalisation)
  67. भारतीय अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण का प्रभाव
  68. सोशल मीडिया एवं साइबर सुरक्षा में दुविधा (Dilemmas in Social Media and Cyber Security)
  69. सोशल मीडिया और भारत
  70. सोशल मीडिया से जुड़ी समस्याएँ
  71. सोशल मीडिया और निजता का मुद्दा
  72. साइबर सुरक्षा दृष्टिकोण के समक्ष समस्याएँ
  73. साइबर सुरक्षा की दिशा में किये गए सरकार के प्रयास
  74. जैविक खाद्य पदार्थों की दुविधा (Dilemma on Organie Food)
  75. खाद्य मानक का महत्त्व
  76. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  77. अध्याय - 7 पारितन्त्र (Ecosystem) पाठ्य सामग्री
  78. पारितन्त्र की संरचना एवं कार्य प्रणाली (Structure and Functioning of Ecosystem)
  79. आहार श्रृंखला (Food Chain)
  80. खाद्य जाल (Food Web)
  81. ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow)
  82. पारिस्थितिक पिरामिड (Ecological Pyramids)
  83. जैव विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity)
  84. जर्मप्लाज्म बैंक अथवा जीन बैंक (Germplasm Bank or Gene Bank)
  85. स्वस्थानें एवं उत्स्थाने संरक्षण (In situ conservation & Ex-situ Conservation of Biodiversity)
  86. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  87. अध्याय - 8 व्यक्ति विशेष की प्रदूषण नियंत्रण में भूमिका (Role of Individual in Pollution Control) पाठ्य सामग्री
  88. जनसंख्या एवं पर्यावरण Population & Environment)
  89. दीर्घकालिक या ठोस विकास (Sustainable Development)
  90. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  91. अध्याय - 9 भारत एवं संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्य (Sustainable Development Goals of India and UN) पाठ्य सामग्री
  92. यूएनडीपी की भूमिका
  93. सर्कुलर अर्थव्यवस्था की अवधारणा एवं उद्योग उपक्रम (Concept of circular economy and entrepreneurship)
  94. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  95. अध्याय - 10 पर्यावरणीय नियम (Environmental Laws) पाठ्य सामग्री
  96. वन अधिकार अधिनियम 2006
  97. स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
  98. पर्यावरणीय संरक्षण में अन्तर्राष्ट्रीय उन्नति (International Advancement in Environmental Conservation)
  99. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF)
  100. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal)
  101. NGT के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय
  102. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  103. अध्याय - 11 हवा की गुणवत्ता (Quality of Air) पाठ्य सामग्री
  104. संयुक्त राष्ट्र की रिर्पोट के अनुसार
  105. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
  106. वायु गुणवत्ता सूचकांक
  107. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
  108. भारतीय परम्परागत पर्यावरणीय ज्ञान का महत्त्व (Importance of Indian Traditional knowledge on Environment)
  109. पर्यावरणीय गुणवत्ता का जैव मूल्यांकन (Bio Assessment of Environmental Quality)
  110. पर्यावरण का क्षेत्र
  111. पर्यावरण का महत्त्व
  112. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
  113. अध्याय - 12 पर्यावरण प्रबन्धन (Environment Management) पाठ्य सामग्री
  114. पर्यावरण प्रबंधन की प्रणालियाँ
  115. पर्यावरण आकलन का महत्त्व (Importance of Environment Assessment )
  116. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के उद्देश्य
  117. भारत में पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन
  118. पर्यावरणीय ऑडिट (Environmental Audit)
  119. पर्यावरण ऑडिट कितने प्रकार के होते हैं?
  120. पर्यावरण लेखा परीक्षा के लाभ
  121. वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।

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